‘कथेसर’ रै इण मंच माथै आपरो घणै मान स्वागत है।
अठै आप ‘कथेसर’ रा सदस्य बण सको। राजस्थानी किताबां बपरा सको।
आज आपां ‘कथेसर’ पत्रिका री सरुआत बाबत बंतळ करस्यां।
आपणी बंतळ राजस्थानी रै साथै—साथै कदे—कदे हिंदी में ई हुवैला, इणसूं जिका लोग राजस्थानी पढण रा अभ्यासी नीं है, या राजस्थानी भासी नीं है, वै ई आपणी बात समझ सकैला।
राजस्थानी भाषा की कथा प्रधान तिमाही पत्रिका है ‘कथेसर’। रामस्वरूप किसान इसके सम्पादक हैं और मैं भी सहयोगी। बहुत से मित्रों का सवाल होता है कि ‘कथेसर’ का मतलब क्या होता है। पूछना स्वाभाविक भी है क्योंकि इस शब्द का जन्म भी इस पत्रिका के साथ हुआ है। राजस्थानी के किसी शब्दकोश में इससे पहले इसे नहीं देखा गया और आम बोलचाल में भी इस शब्द को कम से कम मैंने तो नहीं सुना।
सन 2011 में कथा प्रधान पत्रिका निकालने का विचार आया तो टाइटल पर मंथन शुरू हुआ। महीनों तक मंथन चला। मैं, प्रमोद कुमार शर्मा और किसानजी रोज नए-नए नाम खोजते और हर बार लगता कि वह नाम नहीं निकला, जिसकी दरकार है। आखिर एक दिन ध्यान में आया कि कवि को राजस्थानी में कवीसर कहा जाता है। कवि के साथ ईसर की दीर्घ संधि हुई और क्या प्यारा नाम निकला, कवीसर। बस, अकस्मात कौंधा कथा के साथ ईसर की सन्धि, गुण सन्धि हुई और शब्द प्रकट हुआ ‘कथेसर’। ईसर माने सृजक या निर्माता। तो कथेसर कथाकार का पर्याय हुआ।
इस तरह जन्मी कथेसर और अब तक इसके 35 अंक निकल चुके। कई संयुक्त अंक और कई विसेसांक भी निकले। विसेसांकों में दलित साहित्य विसेसांक, महिला लेखन विसेसांक, रामस्वरूप किसान कहाणी अंक, निशांत कहाणी अंक, चेखव कथा विसेसांक, किन्नर अर दलित साहित्य विसेसांक और आदिवासी साहित्य विसेसांक प्रमुख हैं। आप यदि डाक से मंगवाना चाहें या ऑनलाइन डाउनलोड करना चाहें तो इसी वेबसाईट kathesar.org पर दिए गए लिंक्स के माध्यम से डाक के पते, मोबाइल नंबर और ई—मेल संबंधी जानकारियों की पूर्ति करते हुए दिए गए भुगतान करें। हम अब इसे राजस्थानी किताबों के अड्डे के रूप में विकसित कर रहे हैं। यहां आप किताबें आॅर्डर कर सकते हैं। हम रजिस्टर्ड डाक से तत्काल रवाना करते हैं। अब से हम कथेसर के अंक भी रजिस्टर्ड डाक से भेजना शुरू कर रहे हैं। इस हेतु हमें सदस्यता शुल्क में आंशिक बढ़ातरी करनी पड़ी है, मगर डाक पहुंचने में कोई संशय न रहेगा।
राजस्थानी के लेखक और प्रकाशक मित्र यहां अपनी किताबें बेचना चाहें तो स्वागत है।
डॉ. सत्यनारायण सोनी
(मित्रो, राजस्थानी की यह बात हिंदी में इसलिए लिखी है ताकि जो लोग राजस्थानी पढ़ने के अभ्यासी नहीं हैं, वे भी इस पोस्ट को पढ़ सकें। और मैं ऐसे मित्रों को भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि आप पढ़ना शुरू तो कीजिए। बहुत जल्द अभ्यस्त हो जाएंगे और राजस्थानी पढ़ने में जो सुख और आनंद है, उसमें आपकी भी भागीदारी होगी।)

बहुत अच्छी जानकारी,
मेरे मन मे भी ये सवाल कई बार आया,अब जवाब मिल गया,धन्यवाद गुरुजी
💙🙏
कथेसर के संबंध में आपकी यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। राजस्थानी भासा रै पठेसर सारू ओ अड्डो चोखो है। अठीनै पत्रिका रै साथै साथै बीजी पोथ्यां ई खरीदी जाय सकैली, आ घणी चोखी बात छै।
बहुत अच्छी सर बहुत जरूरी विषय चुनने के लिए कथेसर के सम्पादक मंडल का बहुत-बहुत आभार व शुभकामनाएँ
Thank you sir ..for making Rajasthani language easy for us . We are proud of our rich culture .but still hesitant to speak or read ..Great platform for Rajasthani writer.Highly appreciate your n team efforts..Best wishes!!!